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नयी डगर नया सफ़र मेराः आम आदमी

शहर-दर-शहर
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“धुआँ छटा खुला गगन मेरा
नयी डगर नया सफ़र मेरा
जो बन सके तू हमसफ़र मेरा
नज़र मिला ज़रा…. ” (रंग दे बसंती)

मैं एक आदमी हूं, जो हर सुबह जगता है, काम पे जाता है और शाम में घर लौट आता है। करप्शन का सबसे सॉफ्ट टारगेट मैं ही हूं। जो काम मेरा अधिकार है, उसके लिए मैंने रिश्वत दी है। रिश्वत जो मुल्क का पर्यायवाची बन गया है, हर काम के लिए रिश्वत। राडिया, राजा, लालू, शिबू, सुखराम और न जाने कितने चेहरे, जिसने अपने और अपने परिवार की समृद्धि के लिए मुल्क को चाटकर खा लिया और मैं एक आदमी अबतक चुप बैठा रहा।

विरोध में आवाज उठाने से पहले मैं सौ बार सोचता था, वजह साफ है, दरअसल मैं कंफर्ट जोन से बाहर निकल नहीं पा रहा था, कि तभी एक आंधी चली। आंधी, जिसमें धूल कम और हवा की रफ्तार अधिक थी। आंधी ने हर एक के ड्राइंग रूम से लेकर बेडरूम तक में दस्तक दी है। एक योगी, एक महात्मा, एक सदाचारी, एक सैनिक, एक जागरूक और एक बूढ़ा-जवान इंसान ने इस बड़ी आंधी को खड़ा किया है। मैं जो अबतक डरा-सहमा था, आज खुलकर बोल रहा हूं।

मुझे फर्क नहीं पड़ता कि समाज के तथाकथित बड़े लोग मेरे साथ खड़े हैं या नहीं, मुझे खुशी है कि एक कॉमन मैन के साथ मुल्क का हर कॉमन मैन खड़ा है। कंप्यूटर से लेकर चौपाल तक आज मेरे लिए जारी जंग की चर्चा हो रही है। हर कोई अपने स्तर से कदम बढ़ा रहा है। मोमबत्ती की लौ जलती रहे, इसके लिए हर एक इंसान मेरे साथ खड़ा है। मुझे न ही सचिन, न ही धोनी और न ही आमिर खान का सहारा चाहिए। मुझे पता है कि मैं आम आदमी हूं और मुझे अपनी ताकत का भी अहसास है।

मुझे दुख है कि अबतक सोया था, लेकिन अब जग गया हूं। करप्शन के खिलाफ हम सब आम इंसान अन्ना के साथ हैं। अब यह सचिन, धोनी या उन जैसे अन्य तथाकथित बड़े लोगों पर निर्भर करता है कि वे हमारे साथ हैं या नहीं। हमने अपनी राह चुन ली है, अन्ना ने हमारे लिए लौ जलाई है। यह लौ बुझ न पाए, यह हम सब निर्भर करता है।

मैं हर जगह अन्ना के साथ हूं, पेशेवर की तरह नहीं, एक साथी की तरह। जब कोई कोई पूछता है तो यही कहता हूं कि मैं अपने लिए आया हूं, आता रहूंगा ताकि आने वाली पीढि को अपने काम के लिए रिश्वत न देना पड़े. मेरे पिता जिस काम के लिए ५० रुपये देते थे, मैं ५०० देता हूं। मैं नहीं चाहता कि मेरे बच्चे ५००० रुपये दें। मैं चाहता हूं कि उसे यह पता भी न हो कि रिश्वत क्या बला है। वह जाने कि सन २०११ तक मुल्क में रिश्वत नाम की एक बीमारी थी, जिसे एक बाबा ने नष्ट कर दिया। अन्ना हमारी पीढ़ी के लिए गांधी बाबा है। बाबा, हम आपके साथ हैं….तबतक..जबतक…

यह आम आदमी, मुल्क के हर आम आदमी से यह कहता है कि यदि वे अबकी बार अन्ना के साथ नहीं हैं तो हर सुबह अखबार के पहले पन्ने पर नीरा राडिया और उन जैसे तमाम लोगों की खबरों को पढ़ते हुए यह कहने का का भी उन्हें अधिकार नहीं है कि इस देश को करप्शन ने चाटकर नष्ट कर दिया है….

“जो गुमशुदा-सा ख्वाब था
वो मिल गया वो खिल गया
वो लोहा था पिघल गया
खिंचा खिंचा मचल गया
सितार में बदल गया… ” (रंग दे बसंती)

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