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मैं शब्द से…

शहर-दर-शहर
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शब्दों की दुनिया कितनी अजीब होती है। हम शब्दों में खो जाते हैं, कभी उनमें से कुछ को सुनकर गुस्से में भी आ जाते हैं, फिर भी यह इश्क-ए-शब्द दास्तां सबको प्यारी लगती है। दुनिया के हर कोने में शब्दों में फंसे लोग मिल जाएंगे। यह मुल्कों की सीमाओं को तोड़ती है। जन्म से लेकर मौत के समीप तक शब्द ही है जो हमें सभी से करीब बनाए रखती है। शब्दों से प्यार के एवज में आपको वाक्य मिलेंगे, वो भी एक से बढ़कर एक।

प्यार की दास्तां शब्दों के सहारे ही आगे बढ़ती चली जाती है। पानी से लबालब तालाब से लेकर रेगिस्तान की गर्मी में भी शब्द आपको ठंडक का अहसास दिलाती रहती है। आप कह उठते हैं- मैं शब्द से और शब्द मुझसे। शब्द हमारे लिए योग का माध्यम भी बन जाती है। एक लौ, जो जलकर भी राख नहीं होती है। हम उस लौ में जिंदगी की गाड़ी चलाते रहते हैं।

एक वक्त आता जब हम शबद योगी बनने के लिए कदम बढ़ा देते हैं। एक-एक शब्द जोड़कर वाक्य बनाते हैं, फिर एक नई कहानी, एक नई कविता, एक गीत गढ़ जाते हैं….. हम शबद योगी बन जाते हैं, एक लौ जिंदगी के लिए शुरू कर देते हैं। ऐसे में हमारे सामने दुनिया एक किताब बन जाती है, जिसके हर पन्नों में हम खुद को देखते हैं।

सुख-दुख से आगे निकलते हुए शब्दों की ऐसी दुनिया में दाखिल होते हैं, जहां हर कुछ शब्द ही होता है….। शब्द ही है जो हमें बताता है कि दुख की लंबी एफआईआर होती है, जबकि खुशी का न कोई ठौर होता है न ठिकाना।

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