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मिले सुर मेरा तुम्हारा का चेहरा सदा के लिए सो गया…

शहर-दर-शहर
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दूरदर्शन का जमाना, ब्लैक एंड व्हाइट टीवी और मिले सुर मेरा तुम्हारा। इन सबके साथ एक शख्स सफेद कपड़े में हाथ उठाए खास अंदाज में मिले सुर मेरा तुम्हारा…. गाते हुए आज भी यादों में सामने खड़ा हो जाता है। यह शख्स और कोई नहीं बल्कि हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के महान स्तंभ और किराना घराने के महत्वपूर्ण गायक भीमसेन जोशी थे। इस शख्स ने आज हम सबसे विदा ले लिया। भारत रत्न से नवाजे गए पंडित जी का सोमवार को पुणे के एक अस्पताल में निधन हो गया। वह 89 वर्ष के थे। उनके चिकित्सक अतुल जोशी ने बताया कि जोशी का निधन सुबह 8.05 बजे सहयाद्री अस्पताल में हुआ। पंडित भीमसेन जोशी और पंडित जसराज की गायिकी से खास लगाव रखने की वजह से उनसे व्यक्तिगत लगाव भी बढ़ता चला गया। आज जब पंडित जोशी जी के निधन की सूचना मिली तो आंखे नम हो गई। मिले सुर मेरा तुम्हारा से दोस्ती कराने वाले जोशी जी ने मेरी दोस्ती एचएमवी के एक कैसेट से हुई। मुझे याद है एक बार पूर्णिया से देवघर जाने का कार्यक्रम बना। पूर्णिया में अमित भाईजी ने देवघर में पिताजी के लिए एक कैसेट दी, कैसेट में और किसी की नहीं बल्कि पंडित जोशी की आवाज कैद थी, कैसेट के ऊपर पंडित जोशी जी की तस्वीर आज भी आंखों के सामने तैर रही है।
जोशी कई बीमारियों से जूझ रहे थे और उन्हें किडनी से सम्बंधित बीमारियां भी थी। जोशी को 31 दिसम्बर को पुणे के सहयाद्री अस्पताल में भर्ती कराया गया था और उन्हें 25 दिनों तक गहन चिकित्सा कक्ष में जीवन रक्षक प्रणाली पर रखा गया। अतुल जोशी ने कहा, “शनिवार शाम को उनकी स्थिति और खराब हो गई। तमाम प्रयासों के बाद भी उनकी स्थिति खराब होती गई और सुबह 8.05 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली। जोशी को वर्ष 2008 में देश के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। वह किराना घराने से ताल्लुक रखते थे। वह खय्याल गायकी और भजन के लिए प्रसिद्ध थे।
पंडित जोशी का जन्म कर्नाटक के गडक जिले के एक छोटे से कस्बे में रहने वाले कन्नड़ परिवार में 4 फरवरी 1922 को हुआ था। उनके पिता गुरूराज जोशी एक स्कूल शिक्षक थे। 16 भाई बहनों में भीमसेन सबसे बड़े थे। जोशी की युवावस्था में उनकी मां का निधन हो गया था। जोशी का बड़ा पुत्र जयंत एक पेंटर है जबकि श्रीनिवास वोकलिस्ट और कंपोजर है। पंडित जी ने महज 19 साल की उम्र से ही गाना शुरू कर दिया था और लगभग सात दशकों तक शास्त्रीय गायन किया। पंडित जोशी 1943 में मुंबई आ गए थे और उन्होंने एक रेडियो आर्टिस्ट के रूप में काम किया। म्यूजिक कंपनी एचएमवी ने 22 वर्ष की उम्र में हिन्दी और कन्नड़ भाषा में उनका पहला एलबम रिलीज किया था।
जोशी को मुख्य रूप से खयाल शैली और भजन के लिए जाना जाता है। पंडित जोशी को वर्ष 1999 में पद्मविभूषण, 1985 में पद्मभूषण और 1972 में पद्म श्री से भी सम्मानित किया गया था। जोशी का 1985 में आया मशहूर “मिले सुर मेरा तुम्हारा” गाना आज भी देशवासियों की जुबां पर है। जोशी ने कई बॉलीवुड फिल्मों के लिए भी गाने गाए। 1956 में आई बसंत बहार में उन्होंने मन्ना डे के साथ, 1973 में बीरबल माई ब्रदर में पंडित जसराज के साथ गायन किया। उन्होंने 1958 में आई फिल्म तानसेन और अनकही (1985) के लिए भी गाने गाए।

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